हमारी परंपराओं के पीछे के वैज्ञानिक रहस्य
हमारी परंपराओं के पीछे कई सारे वैज्ञानिक रहस्य छिपे हुए हैं, जिन्हें हम नहीं जान पाते क्योंकि इसकी शिक्षा हमें कहीं नहीं दी गई है। भगवान शिव को सावन के महीने में ढेरो टन दूध यह सोंच कर चढ़ाया जाता है कि वे हमसे प्रसन्न होंगे और हमें उन्नती का मार्ग दिखाएंगे। लेकिन श्रावण मास में शिवलिंग पर दूध चढ़ाने के पीछे क्या कारण छुपा हुआ है |
भगवान शिव एक अकेले ऐसे देव हैं जिनकी शिवलिंग पर दूध चढ़ाया जाता है। शिव भगवान दूसरों के कल्याण के लिए हलाहल विषैला दूध भी पी सकते हैं। शिव जी संहारकर्ता हैं, इसलिए जिन चीज़ों से हमारे प्राणों का नाश होता है, मतलब जो विष है, वो सब कुछ शिव जी को भोग लगता है। धतूरे जैसी विषैली चीज को हम शिव को अर्पित करते हैं!! चलो अब मुद्दे की बात –
1. वात-पित्त कफ, इन तीनों के असुंतलन से बीमारियाँ होती हैं और श्रावण मास वात की बीमारियाँ सबसे अधिक होती हैं। थोड़ा वात के बारे में बता दें –
“वात के बिगड़ने से मुख्यतः ८० विमारियां होती है जैसे हड्डियों और मांसपेशियों में जकड़न, याद दास्त की कमी ,फटी एड़िया, सूखी त्वचा, किसी भी तरह का दर्द, लकवा, भ्रम, विषाद, कान व आँख के रोग , मुख सूखना, कब्ज , आदि ।”
“वात के बिगड़ने से मुख्यतः ८० विमारियां होती है जैसे हड्डियों और मांसपेशियों में जकड़न, याद दास्त की कमी ,फटी एड़िया, सूखी त्वचा, किसी भी तरह का दर्द, लकवा, भ्रम, विषाद, कान व आँख के रोग , मुख सूखना, कब्ज , आदि ।”
2. वात से बचने के लिए ऐसी चीजें नाही खानी चाहिए जिससे की वात संबंधी बीमारिया हों जिसमें पत्ते वाली सब्जियाँ खाना वर्जित माना गया है। और यह ऐसा है की सारे धरती के प्राणियों को प्रभावित करता है।
3. ऐसे समय में पशु क्या खाते हैं? सब अधिकतर घास पत्तियाँ ही तो खाते हैं तो फिर उनका दूध भी अगर आप सेवन करेंगे तो वह भी आपके वात को बढ़ाएगा।
इसलिए आयुर्वेद यह कहता है की की श्रावण के महीने (जब शिवरात्रि होती है) में दूध नाही पीना चाहिए। इसलिए श्रावण मास में जब हर जगह शिवरात्रि पर दूध चढ़ाया जाता है तो ज्ञानिजन उस समय दूध को (जो की विश से कम नहीं होता शरीर के लिए उस समय) पीते नाही अपितु भोलेनाथ शिव पर चढ़ाते है।
इसलिए आयुर्वेद यह कहता है की की श्रावण के महीने (जब शिवरात्रि होती है) में दूध नाही पीना चाहिए। इसलिए श्रावण मास में जब हर जगह शिवरात्रि पर दूध चढ़ाया जाता है तो ज्ञानिजन उस समय दूध को (जो की विश से कम नहीं होता शरीर के लिए उस समय) पीते नाही अपितु भोलेनाथ शिव पर चढ़ाते है।
इस समय दूध पिएंगे तो वायराल इन्फ़ैकशन से बरसात की बीमारियाँ फैलेंगी तो दूध पीना माना है इस समय में। यह इतिसिद्धम है दसियों हजारों वर्षों से।
बोहोत सारी खुजली मच राही होगी ये सब पढ़ने के बाद सेकुलरों के मन मशतिष्क में तो वो अपनी खुजली को मिटाने के लिए कुछ प्रयास खुद भी करें तभी ठीक से खुजली शांत होगी।
जय भोलेनाथ, जय श्री राम
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