एलवा माता शक्तिपीठ



डूंगला कस्बे से तीन किलोमीटर दूर एलागढ़ की पहाड़ी पर स्थित एलवा माता शक्तिपीठ करीब आठ सौ वर्ष पुराना है। इस दर्शनीय स्थल स्थित बड़ की बारियों के बारे में मान्यता है कि इनकी परिक्रमा करने से स्वास्थ्य लाभ मिलता है। दोनों नवरात्र की अष्टमी पर यहां मेला लगता है।

पहाड़ी के ऊपर से वागन बांध, बड़ीसादड़ी, बांसी, खरदेवला, निकुंभ की पहाडिय़ों का आकर्षण नजारा दिखता है। माता एलवा को हिंगलाज माई के दूसरे रूप में माना जाता है। इस मंदिर में एलवा माता की नयनाभिराम प्रतिमा के अलावा बावजी कुशानाथ की समाधि, अखंड धूणी, अंधेरिया ओवरा में नवचक्र, वट पुष्करणीय, शेषनाग की बांबी, ऐलागढ़ पर्वत की परिक्रमा प्राचीन दर्शनीय स्थान हैं। प्रत्येक रविवार को यहां श्रद्धालु माता का आशीर्वाद लेने पहुंचते हैं।

मान्यता है कि यहां श्रद्धापूर्वक मांगी गई मन्नत पूरी होती है। नवरात्र में भजन संध्या समेत विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रम होते हैं। एलवा माता मंदिर के पास अहीर, डांगी, जाट, गायरी, सालवी समेत अन्य समाजों की धर्मशालाएं बनी हुई हैं। पहाड़ के नीचे तलहटी पर महावीर एलवा गोशाला का निर्माण राष्ट्रीय संत कमलमुनि कमलेश की अनुशंसा पर वर्ष 2006 में शांतिलाल दाणी के सहयोग के साथ मिलकर किया गया। यहां अहीर समाज द्वारा सिंहद्वार व रावत समाज द्वारा कृष्ण मंदिर का निर्माण करवाया गया। एलवा माता विकास समिति अध्यक्ष नारायणलाल व्यास ने बताया कि मंदिर परिसर में पानी एवं श्रद्धालुओं के बैठने की व्यवस्था कर रखी है।

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