कुंडली मिलाप क्यों ?


संभावित दूल्हा और दुल्हन के मध्य संवादिता सुनिश्चित करने के लिये उनकी कुडली का मिलान करना ही एक विकल्प है। विवाह के बाद युगल एक दूसरे को प्रभावित करते हैं। एक बार विवाह हो जाये उसके पश्चात उनकी कुडली जीवन भर के लिये उनके भविष्य और जीवनप्रणली को प्रभावित करती है।
कुंडली मिलाप में हर घटक को एक निश्चित अंक दिया गया है जो इस तरह हैं-
वर्ण को1 अंक , वैश्य को 2, दिन को 3, योनी को 4, ग्रह मैत्री को 5, गण को 6, भकूट को 7 और नाड़ी को 8 अंक दिया गया है । सबका जोड़ कुल 36 अंक होते हैं। 36 में 18 अंक 50 % हुआ जिसे औसत माना जाता है और 28 अंक मिले तो संतोषजनक मानते हैं। इससे सुख, सन्तान, धन और स्थिरता सामान्य रहती है।

किस गुण से क्या पता चलता है –
१.. वर्ण-दोनों का वर्ण समान होना चाहिए। वर्ण न मिले तो पारस्परिक वैचारिक मतभेद रहने के कारण परस्पर दूरी रहती है, सन्तान होने में बाधाएं या परेशानियां आती हैं एवं कार्यक्षमता प्रभावित होती है।

2. वश्य-यदि ये न मिले तो जिद्द, क्रोध एवं आक्रामकता रहती है और ये तीनों पारिवारिक जीवन के लिए अच्छे नहीं हैं। इससे परस्पर सांमजस्य नहीं हो पाता है और गृहक्लेश रहता है। दोनों अपने अहं को ऊपर रखना चाहते हैं क्योंकि एक दूसरे पर अपना प्रभाव चाहता है जिससे शासन कर सके। अहं की लड़ाई गृहक्लेश ही लाती है।

3. तारा-यदि ये न मिले तो दोनों को धन, सन्तान एवं परस्पर तालमेल नहीं रहता है। दुर्भाग्य पीछा करता है।

4. योनि-यदि ये न मिले तो मानसिक स्तर अनुकूल न होकर प्रतिकूल रहता है जिससे परेशानियां अधिक और चाहकर भी सुख पास नहीं आता है।

5. ग्रहमैत्री- यदि ये न मिले तो परस्पर तालमेल रहता ही नहीं है।

6. गण- यदि ये न मिले तो भी गृहस्थ जीवन में बाधाओं एवं प्रतिकूलता का सामना करना पड़ता है।

7. भकुट-यदि ये न मिले तो परस्पर प्रेमभाव नहीं रहता है, इसलिए दोनों एकदूजे की आवश्यक देखभाल नहीं करते हैं।

8. नाड़ी-यदि ये न मिले तो स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता है। सन्तान होने में विलम्ब होता है या अनेक बाधाएं आती हैं।

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